हरिद्वार शहर की सीट पर राज्य बनने के बाद हुए चुनाव साल 2002 के पहले ही चुनाव से भाजपा का ही कब्जा रहा है। बीस सालों से यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा है। अविभाजित यूपी में आखिरी बार हरिद्वार में कांग्रेस 1984 में जीती थी। उसके बाद से कांग्रेस को यहाँ से जीत नहीं मिली।
इस बार कांग्रेस ने पूर्व पालिकाध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी को कांग्रेस ने भाजपा के अध्यक्ष के सामने चुनावी रण में उतारा है। कांग्रेस ने इस बार भले दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारा हो, लेकिन इससे भी कांग्रेस का एक धड़ा खफा है, जो एक बार फिर हरिद्वार में कांग्रेस के लिए चूक साबित हो सकती है।
दूसरी तरफ इस बार बीजेपी की बात करें तो इस बार जीत की राह बीजेपी के लिए भी आसान नहीं रह गई है। अब तक के राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में मदन कौशिक को बीजेपी नेताओं व कार्यकर्ताओं ने एक तरफा समर्थन कर जीत दिलाई, लेकिन तीन साल पहले हरिद्वार नगर निगम चुनाव में हरिद्वार नगर निगम चुनाव में बीजेपी का मेयर प्रत्याशी बनाने के बाद भी भाजपा प्रत्याशी अन्नू कक्कड़ मेयर का चुनाव हार गई थीं। इसके बाद मदन कौशिक का भी विरोध शुरू हो गया था।
इसके बाद उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 आते-आते हरिद्वार सीट पर आशुतोष शर्मा, पूर्व मेयर मनोज गर्ग, पूर्व पार्षद कन्हैया खेवड़िया ने कौशिक के खिलाफ ताल ठोक दी थी। हरिद्वार सीट में 1,42,469 मतदाता हैं, जिसमें 78,144 पुरुष और 64,348 महिलायें हैं।
जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा कुल मतदाताओं के 35 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। जबकि दूसरे स्थान पर पंजाबी समुदाय के मतदाताओं की आबादी 20 फ़ीसदी है।ठाकुर 15 फ़ीसदी हैं, जबकि वैश्य समुदाय की आबादी 10 फीसदी है। अब तक भाजपा को मिली जीत का विश्लेषण करें तो उसमे उनका ब्राह्मण होना और पार्टी को बनियों का एकतरफा समर्थन होना इसमे एक भूमिका निभाती आ रही है।
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