इतिहास के पन्नों में जिनके बहादुरी के किस्से छप चुके हैं, उनमें एक नाम वीर सपूत महाराणा प्रताप का भी है। शौर्य गाथाओं में अपना नाम दर्ज करवाने वाले महाराणा प्रताप की आज पुण्यतिथि है।उनकी बहादुरी की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। उन्होंने अपने पराक्रम से मुगलों को नाकों चने चबवा दिए थे।
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई, 1540 को हुआ था. वह महाराणा उदय सिंह और माता जयवंत कंवर की संतान थे। उनकी वीरता के अनेक किस्से हैं। उनकी बहादुरी के आगे राजपूतों ने भी हार मान ली थी।वह युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ बेहद शक्तिशाली थे। वह 7 फुट 5 इंच लंबे थे और उनका 80 किलो का भाला और दो तलवारें हमेशा उनके साथ ही रहते थी। इसके साथ ही वह 72 किलो का कवच धारण किया करते थे. वह अपने साथ 200 किलों से अधिक वजन लेकर चलते थे।
मुगल शासक अकबर जब पूरे भारत पर कब्जा करने में जुटे थे, तब मेवाड़ के वीर योद्धा राजा महाराणा प्रताप ने अपने राज्यों को बचाने के लिए युद्ध लड़ा और विजय प्राप्त की।महाराण प्रताप की मृत्यु धनुष की डोर खींचते वक्त उनकी आंत में लगने से हुई थी। इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका और 57 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी 1597 को उन्होंने आखिरी सांस ली। शत्रु होने के बावजूद महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर खुद अकबर भी रो पड़े थे।
महाराणा प्रताप की बहादुरी के किस्सों में से एक 8 जून 1576 में हुआ हल्दी घाटी का युद्ध भी है। महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की सेना के साथ युद्ध किया था। जिसमें वह आमेर राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5 हजार से 10 हजार से भिड़े थे। उन्होंने 3,000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारियों का सामना किया था।
ये युद्ध 3 घंटे से ज्यादा देर तक चला था। जिसमें वह बुरी तरह जख्मी भी हुए थे। जिसके बाद उन्हें जंगल में रहना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी सेना को तैयार कर फिर से हमला बोला। बताया जाता है कि उन्हें कई दिनों तक जंगलों में रहना पड़ा था। इस दौरान उनके पास खाने की कमी के कारण घास की रोटी भी खानी पड़ी थी।
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