कभी स्कूल के लिए जाना पड़ता था 70 किलोमीटर दूर आज बने IAS

नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विस एग्जाम को सबसे कठीन परीक्षाओं में से एक माना जाता है और इसे पास करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.कई बार छोटी जगहों के स्टूडेंट आईएएस बनने का सपना देखते हैं, लेकिन उनके लिए यह इतना आसान नहीं होता और उन्हें अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं. ऐसी ही कहानी उत्तराखंड के रहने वाले हिमांशु गुप्ता की है, जिन्होंने पिता का हाथ बंटाने के लिए चाय की दुकान पर काम तक किया, लेकिन कड़ी मेहनत से उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईएएस अफसर बन गए.

उत्तराखंड के उधम सिंह जिले के सितारगंज में जन्मे हिमांशु गुप्ता बचपन से पढ़ाई में काफी अच्छे थे और 12वीं के बाद जब वह ग्रेजुएशन कर रहे थे तब उन्होंने यूपीएससी की सिविल सर्विस एग्जाम में शामिल होने के बारे में सोचा था.हिमांशु गुप्ता का बचपन आम बच्चों से काफी अलग था, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उन्होंने अपना बचपन बेहद गरीबी में काटा. हिमांशु के पिता पहले दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे, लेकिन इससे मुश्किल से परिवार को गुजारा हो पाता था.हिमांशु गुप्ता के पिता ने बाद में चाय का ठेला लगाना शुरू किया और हिमांशु भी स्कूल के बाद इस काम में अपने पिता की मदद करते थे. द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हिमांशु बताते हैं, ‘मैंने कई मौकों पर चाय के दुकान पर काम भी किया है और पिता की मदद की.’2006 में हिमांशु का परिवार बरेली जिले के सिरौली चला गया, जहां उनके पिता ने अपना जनरल स्टोर खोला. हिमांशु कहते हैं, ‘आज तक मेरे पिता उसी दुकान को चलाते हैं.’

बरेली के सिरौली जाने के बाद भी हिमांशु गुप्ता की मुश्किलें कम नहीं हुईं, क्योंकि यहां स्कूल जाने के लिए उनको रोजाना 70 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी. हिमांशु कहते हैं, ‘निकटतम इंग्लिश मीडियम स्कूल 35 किमी दूर था और वह हर दिन 70 किमी की यात्रा करते थे.

हिमांशु गुप्ता ने साल 2016 में भारत में रहने और यूपीएससी की ओर रुख करने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत की और साल 2018 में पहली बार यूपीएससी एग्जाम दिया और पास हो गए, लेकिन उनका चयन भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) के लिए हुए. इसके बाद भी उन्होंने तैयारी जारी रखी और 2019 में फिर से परीक्षा दी. दूसरे प्रयास में हिमांशु का चयन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए हुआ. 2020 में अपने तीसरे प्रयास में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल हो गए.

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