पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देने वाले बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष की गुरुवार को 50 वीं वर्षगांठ है। इस ऐतिहासिक युद्ध युद्द के इतने वर्षों बाद भी छावनी स्थित मार्टियर्स होम में रहने वाले जांबाजों के परिवारीजन उस मंजर को याद कर जब दास्तां सुनाते हैं तो सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।68 वर्षीय गोविंद भंडारी ने बताया कि शादी का एक साल भी नहीं बीता था कि बांग्लादेश में युद्ध छिड़ गया। पति कुंडल सिंह भंडारी युद्ध पर चले गए। एक दिन फोन आया और बताया गया कि जंग में जख्मी होने के कारण उनके हाथ काट दिए गए। पैर भी गंभीर रूप से चोटिल थे। इसके बाद जिंदगी एक संघर्ष बन गई।
वहीं, 68 वर्षीय चंबा देवी बिष्ट ने बताया कि उनके पति आनंद सिंह बिष्ट पैरा ट्रूपर कमांडो थे। वह जंग में राजस्थान के गंगानगर में ऑपरेशन लिली कैक्टस में शहीद हो गए थे। उस वक्त बेटी पेट में थी। ऐसे हालात में उन्हें युद्ध पर जाना पड़ा। पति की शहादत के बाद प्राइवेट नौकरी कर बेटी को पाला। कुछ ऐसे ही दास्तां गढ़वाल राइफल्स के हवलदार कुंवर सिंह चौधरी की 80 वर्षीय पत्नी लक्ष्मी देवी ने सुनाया। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानियों के बंकर पहाड़ी पर थे और उनके पति दल के साथ नीचे थे। पहाड़ी पर काबिज दुश्मनों को खदेड़ना था। कई दिनों के प्रयास के बाद भी जब सफलता नहीं मिली तो उन्होंने कुछ सैनिकों को लेकर मानव पिरामिड की मदद से पहाड़ी पर चढ़ाई कर दी। वहां दुश्मनों से जबरदस्त मुठभेड़ में एक पैर खो दिया।
मार्टियर्स होम के डी-1 मकान नंबर में रहने वाले सिपाही अजयवीर सिंह यादव के परिवारीजनों ने बताया कि वह जाट रेजीमेंट में थे। युद्ध के दौरान बिलोनिया सेक्टर में तैनात थे। जहां बहने वाली नदी में दुश्मनों ने करंट उतार रखा था। कई दिनों तक इंतजार के बाद सेना ने नदी पर पुल बनाया और उस पार पहुंचते ही दुश्मनों का सफाया कर दिया।
1971 के युद्ध में 50 स्वतंत्र पैरा ब्रिगेड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए ढाका में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय सैन्य यूनिट बनीं। इसका नेतृत्व तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल केएस पन्नु ने किया। पूर्वी पाकिस्तान के तंगेल में पैराड्रॉपिंग कर इतिहास बनाया और ढाका में घुसने वाली पहली यूनिट बनी। 11 दिसंबर को यह यूनिट 50 एयरक्राफ्ट के साथ कलाकुन्डा वायु सेना बेस व दमदम हवाई अड्डे से रवाना हुई थी। पहले ही दिन बांग्लादेश के अहम पूंगली ब्रिज व लोहाजंग नदी के घाट पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी 93 इंफैन्ट्री ब्रिगेड की ओर से जवाबी कार्रवाई की जा रही थी। लेकिन भारतीय सेना ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। सेना ने 182 दुश्मनों को मार गिराया। इसी क्रम में 16 दिसंबर को सुबह पौने 11 बजे बटालियन ने ढाका में प्रवेश किया। साहसिक एवं वीरतापूर्ण कारनामों के कारण बटालियन को एक महावीर चक्र, पांच वीर चक्र, चार सेना मेडल व चार मेंशन-इन-डिस्पैचेज से नवाजा गया। इसके साथ थिएटर सम्मान-पूर्वी पाकिस्तान 1971 और बैटल सम्मान पूंगली ब्रिज से भी अलंकृत किया जा चुका है।
1972-73 में राज्य सरकार और सेना के संयुक्त प्रयास से मार्टियर्स होम बसाया गया, जिसमें बांग्लादेश युद्ध में शामिल होने वाले वीरों के 16 परिवारों को बसाया गया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने सैनिकों के लिए हजार से 1500 वर्ग फीट के मकान बनवाए। दावा किया गया था कि पांच वर्ष तक एक रुपये प्रतिवर्ष की दर से किराया होगा। इसके बाद मकान उपहार स्वरूप दे दिए जाएंगे। युद्ध में शामिल हुए वीर चक्र विजेता हवलदार कुंवर सिंह चौधरी की पत्नी लक्ष्मी देवी (80 वर्ष) ने बताया कि यहां बुनियादी सुविधाओं का अकाल है। चंपा देवी बिष्ट ने बताया कि पति की शहादत के बाद 134 रुपये की मासिक पेंशन में परिवार चलाना मुश्किल था। कुछ दिन तक सब ठीक चला लेकिन बाद में नोटिस आने लगे। एक बार एक अफसर ने हमें अवैध रिहायशी तक कह दिया था। युद्ध में एक हाथ गंवाने वाले सिपाही कुंडल सिंह भंडारी की पत्नी गोंविद देवी ने बताया कि कागजों की छानबीन सहित आए दिन जांच-पड़ताल होती है। वहीं मार्टियर्स होम में बिजली, सड़क, पानी, नाली, सुरक्षा आदि समस्याएं हैं। यही दर्द हवलदार गोपाल दास जोशी, सिपाही अजयवीर सिंह यादव, सिपाही अजयपाल शर्मा, नायक मदन सिंह रावत, सिपाही चंदर सिंह पांग्ती, सिपाही आन सिंह, सिपाही मंजुल मिश्र, अमृतलाल, राजा सिंह, पान सिंह तोमर, सिपाही मोहम्मदी, मोहन सिंह के परिजनों ने भी बयां किया। कैंट बोर्ड के सीईओ विलास पंवार ने बताया कि अभी मुझे इस प्रकरण की जानकारी नहीं है। समस्याओं का निस्तारण सक्षम स्तर से करवाया जाएगा।
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