ऋषिकेश: विश्वविख्यात पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा (Sundarlal Bahuguna) का आज दोपहर 93 साल की उम्र में निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें बीती 08 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया था।
एम्स के अनुसार, उन्हें आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था। उनके रक्त में ऑक्सीजन की परिपूर्णता का स्तर बीती शाम से गिरने लगा था। चिकित्सक विशेषज्ञ उनकी निरंतर स्वास्थ्य संबंधी निगरानी कर रहे थे।
पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा को कोरोना के साथ ही निमोनिया हो गया था। उन्हें सिपेप मशीन सपोर्ट पर रखा गया था और उनका ऑक्सीजन सेचूरेशन लेवल 86 फीसदी पर आ गया था। एम्स में चिकित्सक उनके ब्लड शुगर लेवल और ऑक्सीजन लेवल को संतुलित करने में जुट थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वह डायबिटीज के मरीज भी थे। एनआरबीएम मास्क ( नॉन रिब्रीथर मास्क) के माध्यम से आठ लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। पर्यावरणविद बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
पर्यावरणविद पदमविभूषण और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी 1927 को टिहरी जिले में भागीरथी नदी किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ। उनके पिता अंबादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे। 13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया।
वह गांधी के पक्के अनुयायी थे और जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा था। पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक में शुमार सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी। साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी। उनका नारा था-‘धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।’ यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये।
1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।
उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ भी मोर्चा खोला। सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए वह जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण की मुहिम में जुटे रहे।
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