हरिद्वार में पूरे विधिविधान के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बड़े बेटे दिवाकर का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया।इस दौरान सीएम ने अपने तीर्थ पुरोहित के पास अपनी बही वंशावली में नाम लिखवाया।
हरिद्वार स्थित कुशा घाट पर यज्ञोपवीत संस्कार एक सूक्ष्म कार्यक्रम में पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। आयोजन में सीएम के साथ उनकी पत्नी सहित परिवार के लोग मौजूद रहे। बता दें कि हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं, जिनमें से यज्ञोपवीत संस्कार विशेष महत्व रखता है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को अपने जीवन में नियमों का पालन करना पड़ता है। उसे अपनी दैनिक जीवन के कार्यों को भी जनेऊ को ध्यान में रखते हुए ही करना होता है। सनातन धर्म में आज भी बिना जनेऊ संस्कार के विवाह पूर्ण नहीं माना जाता है।जनेऊ, यज्ञोपवीत को हिंदू धर्म का विशेष संस्कार माना जाता है। इसे धारण करने की परंपरा सदियों से यूँ ही चली आ रही है। यह संस्कार अमूमन 10 साल से कम उम्र के बालकों का करवाया जाता है। लेकिन आजकल अधिकतर युवा शादी से पहले जनेऊ संस्कार करवाते हैं।यज्ञोपवीत संस्कार से पूर्व मुंडन करवाया जाता है। इस दिन स्नान करवाकर उसके सिर और शरीर पर चंदन केसर का लेप लगाया जाता है और जनेऊ पहनाकर ब्रह्मचारी बनाया जाता है। फिर हवन पूजन किया जाता है।
भगवान गणेश आदि देवताओं का पूजन की बालक को अधोवस्त्र के साथ फूलों की माला पहनाकर बैठाया जाता है। इसके बाद दस बार गायत्री मंत्र पढ़कर देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस दौरान बालक से शास्त्र शिक्षा और व्रतों के पालन का वचन लिया जाता है।गुरु मंत्र सुनाकर कहता है कि आज से तू अब ब्राह्मण हुआ अर्थात ब्रह्म (सिर्फ ईश्वर को मानने वाला) को माने वाला हुआ। इसके बाद मृगचर्म ओढ़कर मुंज (मेखला) का कंदोरा बांधते हैं और एक दंड हाथ में दे देते हैं। वह बालक उपस्थित लोगों से भिक्षा मांगता है।
More Stories
छठ महापर्व को लेकर हरिद्वार के बाजारों में रौनक लौटी
प्रयाग कुंभ में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित : अखाड़ा परिषद
अखाड़े के साधु संतों ने शस्त्र पूजा की