करवा चौथ इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र और रविवार के दिन है। इस दिन दशरथ चतुर्थी होने के कारण इसका अधिक महत्व है। रोहिणी नक्षत्र में इस व्रत को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना है।भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में ही जन्म हुआ था। करवा चौथ के दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपनी शक्ति को परखने के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और संकल्प करती हैं कि अपने पति की लंबी आयु, घर-परिवार की सुख-समृद्धि का।
इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव और पार्वती का पूजन किया जाता है, इसी के साथ-साथ भगवान गणेश और भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय भगवान के भी पूजन का आह्वान किया जाता है। महत्वपूर्ण यह है कि कथाशास्त्रों में वर्णित है सभी सुहागिनों को इस दिन एक साथ मिलकर, एकत्र होकर करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए। ऐसा करने से इस व्रत का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णन आया है कि सत्यवान के प्राण बचाने वाली सावित्री ने भी निरंतर करवा चौथ का व्रत अपने जीवन में किया था, उसी का परिणाम था कि वह यमराज के मुख से भी वह अपने पति के प्राणों को वापस ले आई थी। तभी से यह प्रथा चली आ रही है।
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