देहरादून (भारतजन): उत्तराखंड की लोक संस्कृति के ध्वज वाहक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) का नया गीत ‘ऐंसू होरि मा..’ रिलीज हुआ है। होली के अवसर पर यह गढ़वाली गीत उनके प्रशंसकों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। रिलीज होते ही नेगी दा का यह गीत लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। 72 साल की उम्र में भी वो युवाओं को उत्तराखंडी संस्कृति से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनके गीतों की धूम है और जमकर सराहन मिल रही है। गीत पर आई प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि आज भी लोग उनके गीतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। ‘ऐंसू होरि मा..’ गीत को नरेंद्र सिंह नेगी के ऑफिसियल चैनल पर रीलिज़ किया गया है। इस गीत को खुद नेगी दा ने लिखा और आवाज व संगीत से सजाया है।
नेगी दा (Narendra Singh Negi) के गीतों के बारे में कहा जाता है कि, आप उत्तराखंडी समाज, यहां की सभ्यता, संस्कृति, लोकजीवन, राजनीति आदि के बारे में जानना चाहते हैं तो गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के गीत सुन लीजिए। संपूर्ण तस्वीर सामने आ जाएगी। नेगी दा कवि हैं, गीतकार हैं, लोकगायक हैं और साथ ही एक गूढ़ चिंतक और लोकवाद्यों के विशेषज्ञ भी। एक व्यक्तित्व में इतने गुणों का समावेश बहुत कम देखने को मिलता है।
नेगी दा (Narendra Singh Negi) के गीतों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें फिल्मी गीतों की तरह छिछोरापन नहीं है, बल्कि प्रेम की शालीनता और गरिमा उभरती है। उनके शुरुआती गीतों में गढ़भूमि की वंदना, यहां की प्राकृतिक सुंदरता और लोकजीवन की प्रशंसा खूब दृष्टिगोचर होती है। लेकिन, धीरे-धीरे पर्वतीय समाज की पीड़ा और यहां की व्यवस्थाजनित समस्याएं उनके गीतों में उभरती चली गईं। वह उत्तराखंड के वो लोकगायक जिन्होंने उत्तराखंडी लोकसंगीत को देश-विदेश में पहचान दिलाई। उत्तराखंडी लोक संगीत और लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी एक दूसरे के पर्याय हैं। उनकी गिनती उत्तराखंड के लीजेंड्स में होती है। पलायन, बुजुर्गों का दर्द, पहाड़ की पीड़ा और यहां के लोकजीवन के ऐसे तमाम अनछुए पहलुओं को लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गीतों के माध्यम से जनता के सामने रखा।
Narendra Singh Negi लोकमानस के पुरोधा
आज जब दुनिया से हजारों बोली-भाषाएं लुप्त होती जा रही हों, तब भी उत्तराखंड की बोली-भाषा को न सिर्फ पुनर्स्थापित करने, बल्कि उन्हें लोकभाषा का सिरमौर बनाने की मंशा रखने वाले नेगी लोकमानस के पुरोधा भी हैं। वे उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे लोक गीतकार एवं गायक हैं, जो सभी क्षेत्रों में समान रूप से लोक में प्रतिष्ठापित हैं।
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