2047 तक भारत अपनी विश्वगुरु की प्रतिष्ठा फिर से हासिल करेगा :उपराष्ट्रपति

गुरुकुल कांगड़ी समविवि में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती और स्वामी श्रद्धानंद बलिदान दिवस पर वेद विज्ञान और संस्कृति महाकुंभ का शुभारंभ करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और सृजन का प्रमुख केंद्र है।

उन्होंने उपस्थित शिक्षकों और छात्रों से कहा कि वह एक प्रेरणा के स्रोत हैं। राष्ट्रवादी चेतना और चिंतन के केंद्र हैं। कुछ पश्चिमी विश्वविद्यालय अनर्गल कारणों से हमारी संस्कृति और हमारी विकास यात्रा को कलंकित करने में लगे हैं। कहा कि आपकी विद्वता, संकल्प को देखते हुए इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि भारत की संस्कृति कभी नीचे नहीं होगी आपको उनका प्रतिकार करना चाहिए। कहा कि इस महान देश में कुछ गिने चुने लोग हैं जो भारत की प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं। आप उनकी पाचन शक्ति को ठीक कीजिए।कहा कि वह हमारे ही हैं लेकिन भटके हुए हैं। उन्हें मातृ भाषा में समावेशी शिक्षा प्रणाली स्वीकार ही नहीं है। यह कैसी बात है। अब वह दिन दूर नहीं जब हर शिक्षा मातृभाषा में उपलब्ध होगी। ज्यादा से ज्यादा लोगों को वेदों से अवगत कराने पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारे राष्ट्र-निर्माण के लिए और विश्व के स्थायित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

नई शिक्षा नीति को हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप बताते कहा कि हर भारतवासी को अपनी संस्कृति और विरासत पर गौरव अनुभव करना चाहिए। भारतीयता हमारी पहचान है और राष्ट्रवाद हमारा परम धर्म।भारतीय ज्ञान परंपरा और वैदिक ज्ञान-विज्ञान पर विमर्श को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते उन्होंने कहा कि वेद विज्ञान महाकुंभ का यह पर्व हमें हमारे प्राचीन ज्ञान और विज्ञान के प्रति गर्व महसूस करने का एक अवसर प्रदान करता है। उन्होंने जोर दिया कि हम अक्सर भूल जाते हैं कि हम कौन हैं लेकिन यदि थोड़ा अंदर झांकेंगे तो पता लगेगा कि विश्व में हमारा मुकाबला करने वाला और कोई देश नहीं है।

उपराष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि 2047 तक भारत न सिर्फ विकसित राष्ट्र होगा बल्कि विश्व गुरु की अपनी प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करेगा। उन्होंने कहा कि उनके सामने जो छात्र-छात्राएं हैं, वह 2047 के भारत के योद्धा हैं और निश्चित रूप से सफलता अर्जित करेंगे।

हरिद्वार:उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीयता हमारी पहचान है और राष्ट्रवाद हमारा परम धर्म है। हमारी नई शिक्षा नीति हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप है। हर भारतवासी को अपनी संस्कृति और विरासत पर गौरव अनुभव करना चाहिए। उन्होंने कहा जो लोग देश की संस्कृति, गौरवमयी अतीत और वर्तमान विकास को लेकर अपमान का भाव रखते हैं।भारत की महान छवि को धूमिल करने में लगे रहते हैं। उनके हर कुप्रयास को कुंठित करना हर भारतीय का परम दायित्व है और कर्त्तव्य है। उपराष्ट्रपति ने कहा जो हमारी संस्कृति के विरोध में है राष्ट्रवाद के विरोध में है हमारे अस्तित्व के विरोध में है उन पर प्रतिघात होना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा और वैदिक ज्ञान विज्ञान का एकेडमिक विमर्श और अनुप्रयोग का अनिवार्य अंग बनाने के यह एक सार्थक प्रयास है।

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