भीषण आपदाओं को लेकर मातृ सदन में 12 से 14 फरवरी तक एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण सेमिनार का आयोजन किया जाएगा. इस सेमिनार में देश-विदेश से गंगा प्रेमी भाग लेंगे. मातृ सदन के स्वामी शिवानंद की मानें तो सेमिनार में न्यायपालिका, विधायिका, संत समाज एवं आमजन की भूमिका पर विचार और मंथन कर जवाबदेही तय की जाएगी. उनका साफ कहना है कि देवभूमि उत्तराखंड विनाश के कगार पर पहुंच गया है. जोशीमठ इसका जीता जागता उदाहरण है.
हरिद्वार के मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि सरकार विकास के नाम पर उत्तराखंड को विनाश की राह पर धकेल रही है. मातृ सदन शुरू से ही सरकार की विनाशकारी योजनाओं का विरोध करता आ रहा है. इस कड़ी में आगामी 12 से 14 फरवरी तक मातृ सदन में वृहद सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें बिहार, बंगाल, झारखंड समेत अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में गंगा प्रेमी भाग लेने आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका से नेशनल मंडेला की सरकार में मंत्री रहे जयसीलन नायडू भी अपने साथियों के साथ हरिद्वार आकर सेमिनार में शिरकत करेंगे.
स्वामी शिवानंद ने बताया कि सेमिनार में तीन सत्र होंगे. तीनों में अलग-अलग पहलुओं पर विचार किया जाएगा. पहला आध्यात्मिक पहलू है. क्योंकि, उत्तराखंड आध्यात्मिक भूमि है. यहां रहकर ऋषि-मुनि तपस्या करते हैं, अभी भी सूक्ष्म जगत में अनेक ऋषि मुनि हैं. ऐसे में यहां के आध्यात्मिक जगत को क्या क्षति पहुंच रही है और उसका क्या परिणाम हम पर पड़ रहा है? इस पर विचार-मंथन होगा.
दूसरा पहलू धार्मिक जगत से जुड़ा है. धार्मिक जगत में अनेक सामाजिक व्यवस्थाएं हैं. उसे हम कैसे विरत होकर प्रकृति का विनाश कर रहे हैं. नदियों को बांधने का क्या परिणाम हो रहा है? पेड़ काटने का क्या प्रभाव होगा? पहाड़ खोदकर सुरंग बनाने से क्या होगा? इस पर मंथन किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि तीसरा व्यावहारिक पहलू है. न्याय चार तरीके का होता है. वैयक्तिक न्याय, सामाजिक न्याय, राजकीय न्याय और प्राकृतिक न्याय. जब पहली तीन न्याय प्रणाली क्षीण हो जाती है, तब प्रकृति अपना कार्य करती है. जोशीमठ में वही देखने को मिल रहा है. सेमिनार में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति व राजनीतिज्ञ नेल्सन मंडेला के सरकार में मंत्री रह चुके जयसीलन नायडू, जल पुरुष राजेंद्र सिंह समेत अन्य बुद्धिजीवी व पर्यावरणविद मौजूद रहेंगे.
वहीं, स्वामी शिवानंद ने कहा कि वो सभी से आह्वान करते हैं कि इस सेमिनार में बड़ी संख्या में आए और अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वहन का ब्यौरा दें. यह केवल सेमिनार नहीं है, यह एक ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन है. ताकि सब आत्ममंथन करें, नहीं तो विनाश बहुत निकट है. जिन सैकड़ों साल पुराने देवदार के पेड़ में देवत्व का वास है, उस पर यदि हम सीधा आरी चला देंगे तो क्या हम इसका परिणाम नहीं भुगतेंगे?
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