अश्विन शुक्ल शरद पूर्णिमा की महारात्रि में भगवान कृष्ण ने पहला महारास ब्रह्मलोक में किया और दूसरा बृज में। ब्रह्मलोक के महारास में लीन राधाकृष्ण जलरूप हो गए जो गंगा बने।शरद पूर्णिमा की रात्रि में बृजभूमि के महारास में राधाकृष्ण के पुन: द्रवीभूत होने से प्रेमरस संसार में फैला।
बुधवार को फिर वही शरद पूर्णिमा है जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उदित होंगे। पूर्णिमा के प्रकाश में आकाश से सोम रूपी अमृत की वर्षा होगी। इस प्रकाश में यदि रात भर दूध मिश्रित चौले या दूध चावल की खीर रखकर खाई जाए तो उसके अमृत पान से शरीर के अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। मंगलवार को पूर्णिमा चूंकि सूर्यास्त के बाद आई तो शास्त्र मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा बुधवार को मनाई जा रही है।
गंगा सभा विद्वत परिषद सदस्य पंडित अमित शास्त्री ने बताया कि बुधवार को पूर्णिमा सूर्योदय काल से सूर्यास्त के बाद रात 8.25 तक रहेगी। अत: पूर्ण पूर्णिमा योग बन रहा है। स्नान दान की पूर्णिमा इसी दिन है और इसी दिन से एक महीने चलने वाला कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाएगा।
चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इन दिनों चंद्रमा से बरसने वाला अमृत धरती को अमरता रूपी आरोग्य और आनंद प्रदान करता है। शास्त्रों में वर्णन है कि धूलोक में सोमरूपी अमृत का भंडार है।
चंद्रमा जब धरती के सबसे करीब होता है तो उसकी किरणें धूलोक का अमृत धरती पर लाती हैं। किरणों के आगमन का चरमोत्कर्ष शरद पूर्णिमा की रात्रि में होता है। इन दिनों चंद्रमा की धरती से दूरी सबसे कम होती है, इसलिए चांदनी में चंद्रमा को देखने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। पूर्णिमा की रात्रि में चांदनी में बैठने से सभी अंग पुष्ट होते हैं।
शरद पूर्णिमा को कौमदि पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नामों से भी पुकारा जाता है। अमृत प्रदायिनी शरद पूर्णिमा की रात्रि में यदि गंगा, यमुना, गोदावरी आदि पावन नदियों के तट पर चांदनी में बैठें तो जल के निकट अमरत्व का प्रभाव दोगुना हो जाता है।
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