हर वर्ष कार्तिक कृष्ण की अमावस्या को लक्ष्मी पूजा कर दीपावली पर्व मनाये जाने का विधान है। इस दिन भगवान राम रावण का वध करके लंका विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे। इसी दिन भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि की कैद से लक्ष्मी सहित अन्य देवताओं को छुड़वाया था। उनका सारा धन-धान्य, राजपाठ, वैभव लक्ष्मी जी की कृपा से पुनः परिपूर्ण हुआ था। महालक्ष्मी भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी सिद्धि से ही जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। जहां लक्ष्मी का वास होता है, वहां सुख-समृद्धि का वास होता है। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस वर्ष 24 अक्टूबर सोमवार को शाम 6ः55 मिनट से रात 8ः51 मिनट तक का समय शुभ मुहूर्त माना गया है। आइये जानते हैं मां लक्ष्मी की पूजन विधि।
पूजा स्थान पर एक चौकी पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि गणेश जी लक्ष्मी जी के दायीं दिशा में रहें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। उनके सामने बैठकर चावल के दानों पर वरुण देवता के प्रतीक कलश की स्थापना करें। कलश पर लाल वस्त्र में लपेटकर एक नारियल इस प्रकार रखें कि उसका केवल अग्रभाग ही दिखाई दे। दो बड़े दीपक लेकर एक में घी और दूसरे में सरसों का तेल भरकर रखें। एक को लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के चरणों में और दूसरे को चौकी की दाई तरफ रखें।गणेश जी के सामने एक छोटा दीपक रखें। इसके बाद शुभ मुहूर्त के समय जल, मौली, अबीर, चंदन, गुलाल, चावल, धूपबत्ती, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि लेकर सबसे पहले मूर्ति का पवित्रीकरण करें। फिर सारे दीपकों को जलाकर उन्हें नमस्कार कर उन पर चावल छोड़ दें। पुरुष और स्त्रियां गणेश जी, लक्ष्मी जी और अन्य देवी-देवताओं का विधिवत षोडशोपचार पूजन, श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त और पुरुष श्री सूक्त का पाठ करें और उनकी आरती उतारें।
बही खातों की पूजा करने के बाद नए लिखने की शुरुआत करें। तेल के दीपक जलाकर घर के हर कमरे में, तिजोरी के पास, आंगन में और गैलरी, दरवाजों, छत की मुंडेरों आदि जगहों पर रखें। घर के किसी भी कोने में अंधेरा न रहने दें। खांड की मिठाइयां, पकवान, भोजन और खीर आदि का भोग लगाकर सबको प्रसाद बांटे।
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